Wednesday, August 26, 2009

असभ्‍य ही बना रहना चाहता हूँ

कहना चाहता हूँ
मैं
बहुत कुछ,
बहुत समय से
तथाकथित सभ्‍य समाज से,
चुप हूँ
सभ्‍यता की भाषा
मैं नहीं जानता
क्‍योंकि
शब्‍दाडंबर मुझे पसन्‍द नहीं हैं,
न तो शहरी हूँ,
न ऊँचे ओहदे का मालिक,
उम्र भी नहीं है
डरता हूँ
कहीं, इस अभाव में
महज बचपना परिभाषित कर
मखौल न उड़ा दिया जाय,
जानता हूँ
अधिकार विहीन होता है सभ्‍य समाज,
हावी होते है छिछले कर्त्‍तव्‍य
अधिकारों पर,
बंधी होती है वाणी
सभ्‍यता के खोल में,
मैं
अपने अधिकारों का
खुलकर उपयोग करना चाहता हूँ,
इसीलिए
चुप रहकर ही
असभ्‍य बना रहना चाहता हूँ ।
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