गति बाधा
तोडना चाहता हूं
मुझे नदी से लगाव है,
‘मैं’
माध्यम हूं
प्रवाह की बाधा तोडने का,

अनुरोध किया था
कई छोटे-बडे नालों ने,
पूर्ण प्रवाह की बाधाओं को समझकर
डर था उन्हें भी
प्रवाह गर धीमा हुआ,
बाधाओं से उलझा
तो
सूख जाएगी नदी,
फिर कैसी नदी ?
कैसी गति ?
बाधाएं कभी सहयोगी नहीं होती
गति को तोडती हैं,
गति का टूटना,
अस्तित्व का टूटना है
नदी में मिलने वाले सहयोगी नाले,
चाहते हैं
नदी ऊॅंचाईयां चढे,
प्रवाह और तेज हो,
नदी दुगुनी गति से
समन्दर की जानिब बहे
और
परम वैभव रूपी समन्दर बन जाए,
नदी का समन्दर में मिलना
नालों की भी महानता है
समन्दर की
महानता, धीरता
नदी से कई गुनी अधिक होती है
यह नदी भी जानती है,
नाले भी
क्योंकि नाले भी चाहते है
नदी में मिल
समन्दर बनना,
बाधाएं ठोस है,
उनमें तरलता नहीं,
इसीलिए वे स्थिर है,
नदी के बीच की बाधा बनकर,
उन्हें नहीं पता
क्या होता है प्रवाह का आनन्द,
तरलता और सहृदयता,
यह बातें बखूबी समझती है
नदी
जो स्वतः ही समेट लेती है
नालों को
अपने अस्तित्व में
और अपने संग-संग नालों को
समन्दर की महानता का वरण कराती है
मैं भी
नाला, नदी और समन्दर
बनना चाहता हूं ,
बहना चाहता हूं,
प्रवाह का आनन्द लेना चाहता ह
और इसीलिए
मुझे बाधाओं से शिकायत है ।
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Thanks for post. It’s really imformative stuff.
ReplyDeleteI really like to read.Hope to learn a lot and have a nice experience here! my best regards guys!
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rockstarbabu
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"बाधाओं से उलझा
ReplyDeleteतो
सूख जाएगी नदी,
फिर कैसी नदी ?
कैसी गति ?"
Sunder Kavitaa. Jaaree Rakhiye.
nice...badhayen thos hain....ye bhi pasand aaya..
ReplyDeletethanks for appreciation.