Tuesday, November 3, 2009

आंखों की शर्म


" बूढी हुई शाम के संग, बेसुध सवेरा हो गया,
पवन ने जो छोड़ी गति, पागल जमाना हो गया।

आंखों की शर्म, ओहदों पर भारी लगी,
इक ईशारे पर सूरज, जब चंदा संग हो गया। "

(यह चार पंक्तियां किसी प्रसंग विशेष पर किसी व्‍यक्ति विशेष के लिए लिखी गई है, आप तो बस भाव समझ कर इन पंक्तियों का आनंद उठाईये)