"हम तो फकत
तुलसी पौध की मानिंद है,
जो
बड़ा होकर भी
छोटा ही रहा,
पूज्य रहकर
घर का कोना ही पा लिया,
और
घूमते- फिरते
किसी शख्स ने,
जब चाहा नोंचा-खरौंचा,
पत्ता तोड़ा
और
खा लिया । ''
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Thursday, August 27, 2009
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ये छोटी सी कविता सुन्दर और सारगर्भित है। बधाई !
ReplyDeleteसुभाष नीरव
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तुलसी के पौधे जितना गुणकारी कोई दूसरा पौधा नहीं होता!
ReplyDeleteदूसरों को लाभ पहुँचाना तो उसका कर्तव्य है!
वैसे भी प्रकृति से ताकतवर और कौन है!
एक पत्ता क्या एक कल्ला खा लीजिए,
कुछ ही दिनों आ जाते हैं चार गुना कल्ले,
सोलह गुना पत्तों के साथ!
किसी का तुलसी हो जाना, तो उसके लिए गर्व की बात है!
मैं तो इसे बहुत अच्छी बात समझता हूँ!
gagar me sagar.narayan narayan
ReplyDeleteकम शब्दों में लिखी सारगर्भित रचना । शुभकामनयें ।
ReplyDeleteआपका स्वागत है ।
गुलमोहर का फूल
sajjan vyaktiyon ka jeevan bhi tulasi ke paudhe jaisa hi hota hai!....uttam rachanaa!
ReplyDeleteपर रहे तो पावन न ........
ReplyDeleteaati sunder
ReplyDeletebahut hi badhia
मर्मस्पर्शी कविता. कृपया कमेंट बॉक्स से वर्डवेरीफिकेशन हटा दें.
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